उत्तराखंड के अशासकीय स्कूलों में अफसरों की मिलीभगत से अस्थायी पदों पर नियुक्ति में घपला हो रहा है। अस्थायी पदों की निरंतरता को बढ़ाने के नियम के बावजूद स्कूलों ने इन पदों की अवधि बढ़वाने का प्रयास नहीं किया और शिक्षा विभाग के अफसर भी आंखे मूंदे रहे। पिछले चार साल से इन पदों पर कार्यरत कर्मचारियों को मानदेय बदस्तूर बांटा जा रहा है। अस्थायी पदों पर हो रहा गोलमाल जानकारी में आने पर सरकार ने इसकी रिपोर्ट मांगी है। वर्ष 2013-14 से वर्ष 2016-17 तक सोए रहे शिक्षा निदेशालय के अफसर सरकार की सख्ती से हरकत में आए हैं। सहायक निदेशक भूपेंद्र सिंह नेगी ने सभी सीईओ से छह बिंदुओं पर रिपेार्ट तलब की है। सूत्रों के अनुसार अस्थायी पदों की संख्या 250 के करीब बताई जा रही है। जांच के बाद इन पदों की सही तस्वीर सामने आने की उम्मीद है। मालूम हो कि राज्य में इस वक्त अशासकीय स्कूलों की संख्या 780 से ज्यादा है। इनमें सरकार से अनुदान प्राप्त स्कूलों की संख्या साढे़ तीन सौ के करीब है। बाकी वित्तविहीन मान्यता प्राप्त हैं।
यह है गोलमाल
एक बार स्वीकृत अस्थायी पदों को कायम रखने के लिए उनकी विधिवत प्रक्रिया से निरंतरता बढ़ाई जाती है। पर, वर्ष 2013 से 2017 तक निरंतरता नहीं बढ़ाई गई। नियमानुसार यदि कोई पद तीन साल तक रिक्त रहता है तो उसे समाप्त मान लिया जाता है। लेकिन इन पदों के हिसाब से वेतन लगातार जारी हो रहा है। यह सीधे सीधे वित्तीय अनियमितता है।
नियमविरुद्ध अनुदान का मामला भी सुर्खियों में
अशासकीय स्कूलों को अनुदान श्रेणी में शामिल करने में भी काफी मनमानी की गई। राज्य में पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार के कार्यकाल में अशासकीय स्कूलों को पूर्ण अनुदान देने पर रोक लगा दी गई थी। लेकिन भाजपा सरकार के सत्ता में आने के बाद 17 स्कूलों को पूर्ण अनुदान दे दिया गया। बीती 23 जनवरी को मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत ने समीक्षा बैठक के दौरान यह मामला जानकारी में आने पर अनुदान निरस्त करने के आदेश दिए थे। उस बैठक को हुए 24 दिन हो गए हैं, लेकिन अब तक कार्रवाई नहीं की गई।